केंद्र ने केंद्रीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) से यह पता लगाने के लिए विस्तृत अध्ययन करने को कहा है कि प्लास्टिक की बोतल में तरल दवाई रखने से क्या उसमें किसी प्रकार की लीचिंग हो रही है. ढाई
साल से ज्यादा वक्त पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से प्रारूप निर्देश आए थे जिसमें दवाइयों को प्लास्टिक और पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी) बोतलों की बजाय कांच की बोतलों में रखने की बात कही गई है.
मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि अध्ययन में सामने आई बातों को दवाइयों के लिए मानक के देश के शीर्ष वैधानिक प्राधिकरण दवा तकनीक सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) ने भी समर्थन किया था. सूत्र ने कहा, डीटीएबी ने यह भी सिफारिश की थी कि प्लास्टिक और पीईटी बोतलों का इस्तेमाल दवाइयों को रखने के लिए नहीं हो खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गो के लिए बनी दवाओं के मामले में. मई 2016 में सामने आया कि अध्ययन पूर्व जैव प्रौद्योगिकी सचिव एमके भान की अगुवाई में किए गए अध्ययन के विपरीत था.
साल से ज्यादा वक्त पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से प्रारूप निर्देश आए थे जिसमें दवाइयों को प्लास्टिक और पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी) बोतलों की बजाय कांच की बोतलों में रखने की बात कही गई है.
क्या होता है लीचिंग?
लीचिंग वह प्रक्रिया है जिसमें बोतल में रखे जल में घुलनशील तत्व बाहर आ जाते हैं और उसमें रखी सामग्री से मिल जाते हैं. पिछले साल सरकारी अध्ययन में यह सामने आया था कि प्लास्टिक की बोतलों में रखे गए खांसी के सीरप और अन्य तरल दवाइयों में लेड सहित विषाक्त सामग्री मिली है. इसने कहा था कि ऐसी बोतलों से खतरनाक सामग्री निकलती है और ऐसी बोतलों में दवाइयों के रखने पर रोक लगाने का सुझाव दिया है.मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि अध्ययन में सामने आई बातों को दवाइयों के लिए मानक के देश के शीर्ष वैधानिक प्राधिकरण दवा तकनीक सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) ने भी समर्थन किया था. सूत्र ने कहा, डीटीएबी ने यह भी सिफारिश की थी कि प्लास्टिक और पीईटी बोतलों का इस्तेमाल दवाइयों को रखने के लिए नहीं हो खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गो के लिए बनी दवाओं के मामले में. मई 2016 में सामने आया कि अध्ययन पूर्व जैव प्रौद्योगिकी सचिव एमके भान की अगुवाई में किए गए अध्ययन के विपरीत था.
Manbhawan Pandey