सूर्य नमस्कार करने के फायदे, महत्व और ध्यान देने वाली बाते

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सूर्य नमस्कार सुबह करना चाहीए
सूर्य नमस्कार सभी योगासनों में से सर्वश्रेष्ठ माना गया है. आप चाहे कोई व्यायाम करें या न करें, पर अगर आप दिन में एक बार भी सूर्य नमस्कार कर लेते हैं, तो समझिये आपके सारे रोग एक-एक कर के खतम हो जाएंगे. यह अकेला अभ्यास ही इंसाना को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है.  सूर्य नमस्कार ऐसा योग है जिसको करने के बाद अगर आप कुछ और व्यायाम ना भी कर करें, तो भी काम चल जाएगा। सूर्य नमस्कार ऐसा योग है जो आपको शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।  सूर्य नमस्कार अगर रोज किया जाए तो आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आएगी।

सूर्य नमस्कार करने के अनगिनत फायदे हैं. सूर्य नमस्कार करने से मोटापा दूर होता है, मन की एकाग्रता बढ़ती है, शरीर में लचीलापन आता है, पेट ठीक रहता है, सुंदरता में निखार आता है तथा शरीर की खराब मुद्रा भी ठीक हो जाती है.

सूर्य नमस्कार करने के फायदे:-


सूर्य नमस्कार करते वक्त 12 आसन किये जाते हैं, जिससे शरीर के हर अंग पर असर पड़ता है. सूर्य नमस्कार को सुबह के समय सूरज की ओर मुख कर के ही करना चाहिये क्योंकि सूरज हमें ऊर्जा प्रदान करता है.

लचीलापन आता है -
 सूर्य नमस्कार करने से शरीर में अकडऩ कम हो जाती है और शरीर में लचक पैदा होने लगती है. यह एक बहुत ही अच्छा व्यायाम है.

वजन कम होता है - 
सूर्य नमस्कार करने से शरीर के हर भाग पर जोर पड़ता है, जिससे वहां की चर्बी धीरे धीरे गलने लगती है. अगर आप मोटे हैं तो सूर्य नमस्कार रोज करें.

शारीरिक मुद्रा में सुधार - 
कई लोग झुक कर चलते व बैठते हैं, जिससे उनके शरीर की पूरी बनावट खराब दिखती है. लेनिक सूर्य नमस्कार करने से अंदर से शारीरिक सुधार होने लगता है. इससे शरीर का सारा दर्द भी खतम हो जाता है.

पाचन क्रिया में सुधार -
 सूर्य नमस्कार करने से पाचन क्रिया में सुधार होता है. इससे खाना पचाने वाला रस ज्यादा मात्रा में निकलता है और पेट में छुपी गैस बाहर निकल जाती है, जिससे पेट हमेशा हल्का बना रहता है.

हड्डियां बनाए मजबूत -
 सूरज के सामने सूर्य नमस्कार करने से शरीर में विटामिन डी जाता है, जिससे खूब सारा कैल्शियम हड्डियों दृारा सोख लिया जाता है.

तनाव दूर होता है -
सूर्य नमस्कार करते वक्त लंबी सांस भरनी चाहिये, जिससे शरीर रिलैक्स हो जाता है. इसे करने से बेचैनी और तनाव दूर होता है तथा दिमाग शांत होता है.

पाइल्स और कब्ज दूर होता है -
आगे की ओर झुकाव करने से कब्ज और पाइल्स की समस्या नहीं होती. यह करने से पेट की पाचन क्रिया में भी सुधार होता है.

अनिंद्रा दूर होती है  -
लोगों में अनिंद्रा की समस्या आम हो गई है तो ऐसे मे सूर्य नमस्कार जरुर करना चाहिये. इससे शरीर रिलैक्स हो जाता है, जिससे रात को अच्छी नींद आती है.

ब्लड सर्कुलेशन बढाए-
 सूर्य नमस्कार करते वक्त आप अपने शरीर के हर हिस्से का प्रयोग करते हैं जिससे आपके शरीर में खून का दौरा तेज हो जाता है. ऐसा होने पर शरीर में पूरे दिन एनर्जी भरी रहती है.

पीरियड्स रेगुलर करे-
 कई महिलाओं में अनियमित पीरियड्स होते हैं जो कि सूर्य नमस्कार को नियमित रूप से करने से ठीक हो जाता है. यह हार्मोन को भी बैलेंस करता है.

खूबसूरत त्वचा बनाए-
 इसे नियमित रूप से करने पर शरीर में खून का दौरा तेज होने के साथ पेट भी सही रहता है. साथ ही चेहरे से झुॢरयां मिट जाती हैं.

मन की एकाग्रता बढ़े-
 योगा करने से आपका शरीर पूरी तरह से फ्री हो जाता है. इसको करने से वात, पित्त और कफ दोष शांत हो जाते हैं. इससे शरीर स्ट्रेस से दूर अध्यात्म की ओर चला जाता है.

आसनों के दौरान सांस खींचने और छोड़ने से फेंफड़े तक हवा पहुंचती है, इससे खून तक ऑक्सीजन पहुंचता है, जिससे शरीर में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड और बाकी जहरीली गैस से छुटकारा मिलता है।

सूर्य नमस्कार के अभ्यास से शरीर (विभिन्न आसनो से), मन (मणिपुर चक्र से) और आत्मा ( मंत्रोच्चार से) सबल होते हैं| पृथ्वी पर सूर्य के बिना जीवन संभव नही है| सूर्य नमस्कार, सूर्य के प्रति सम्मान व आभार प्रकट करने की एक प्राचीन विधि है, जो कि पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों का स्रोत है |

सूर्य नमस्कार के १२ आसन | 12 Steps of Surya Namaskar in Hindi:

1. प्रणाम आसन | Prayer pose2. हस्तउत्तानासन |Raised Arms pose3. हस्तपाद आसन |Hand to Foot pose4. अश्व संचालन आसन | Equestrian pose5. दंडासन |Dandasana (Stick pose)6. अष्टांग नमस्कार | Ashtanga Namaskara (Salute With Eight Parts Or Points)7. भुजंग आसन |Bhujangasana (Cobra pose)8. पर्वत आसन | Parvatasana (Mountain pose)9. अश्वसंचालन आसन | Ashwa Sanchalanasana (Equestrian pose)10. हस्तपाद आसन | Hasta Padasana (Hand to Foot pose)11. हस्तउत्थान आसन | Hastauttanasana (Raised Arms pose)12. ताड़ासन | Tadasana

सूर्य नमस्कार करने की विधि ही जानना पर्याप्त नहीं है, इस प्राचीन विधि के पीछे का विज्ञान समझना भी आवश्यक है| इस पवित्र व शक्तिशाली योगिक विधि की अच्छी समझ, इस विधि के प्रति उचित सोच व धारणा प्रदान करती है| ये सूर्य नमस्कार की सलाहें आपके अभ्यास को बेहतर बनाती है और सुखकर परिणाम देती है|

मणिपुर चक्र में ही हमारे भाव एकत्रित होते है और यही वो स्थान है जहाँ से अंतःप्रज्ञा विकसित होती है| सामान्यतया मणिपुर चक्र का आकार आँवले के बराबर होता है, लेकिन जो योग ध्यान के अभ्यासी हैं उनका मणिपुर चक्र 3 से 4 गुना बड़ा हो जाता है| जितना बड़ा मणिपुर चक्र उतनी ही अच्छी मानसिक स्थिरता और अन्तर्ज्ञान हो जाते हैं|
- श्री श्री रवि शंकर

सूर्य नमस्कार के पीछे का विज्ञान |The Science behind Surya Namaskar

भारत के प्राचीन ऋषियों के द्वारा) ऐसा कहा जाता है कि शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न देवताओं (दिव्य संवेदनाए या दिव्य प्रकाश) के द्वारा संचालित होते है| मणिपुर चक्र (नाभि के पीछे स्थित जो मानव शरीर का केंद्र भी है) सूर्य से संबंधित है| सूर्य नमस्कार के लगातार अभ्यास से मणिपुर चक्र विकसित होता है| जिससे व्यक्ति की रचनात्मकता और अन्तर्ज्ञान बढ़ते हैं| यही कारण था कि प्राचीन ऋषियों ने सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए इतना बल दिया|

दिन का प्रारंभ सूर्य नमस्कार से करें | Start the Day With Surya Namaskar

सूर्य नमस्कार में 12 आसान होते हैं| इसे सुबह के समय करना बेहतर होता है| सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचरण बेहतर होता है, स्वास्थ्य बना रहता है और शरीर रोगमुक्त रहता है| सूर्य नमस्कार से हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर शरीर के सभी अंगो के लिए बहुत से लाभ हैं| सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगो को बहुत लाभान्वित करता है| यही कारण है कि सभी योग विशेषज्ञ इसके अभ्यास पर विशेष बल देते हैं |
सूर्य नमस्कार के आसन हल्के व्यायाम और योगासनो के बीच की कड़ी की तरह है और खाली पेट कभी भी किए जा सकते हैं| हालाँकि सूर्य नमस्कार के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह मन व शरीर को ऊर्जान्वित कर तरो ताज़ा कर देता है और दिनभर के कामो के लिए तैयार कर देता है| यदि यह दोपहर में किया जाता है तो यह शरीर को तत्काल ऊर्जा से भर देता है, वहीं शाम को करने पर तनाव को कम करने में मदद करता है | यदि सूर्य नमस्कार तेज गति के साथ किया जाए तो बहुत अच्छा व्यायाम साबित हो सकता है और वजन कम करने में मदद कर सकता है|
बच्चो को सूर्य नमस्कार क्यों करना चाहिए? |Why Should Children Do Surya Namaskar?
सूर्य नमस्कार मन शांत करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है| आजकल बच्चे महती प्रतिस्पर्धा का सामना करते है| इसलिए उन्हे नित्यप्रति सूर्य नमस्कार करना चाहिए क्योंकि इससे उनकी सहनशक्ति बढ़ती है और परीक्षा के दिनों की चिंता और असहजता कम होती है|
सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर में शक्ति और ओज की वृद्धि होती है| यह मांसपेशियों का सबसे अच्छा व्यायाम है और हमारे भविष्य के खिलाड़ियों के मेरुदण्ड और अंगो के लचीलेपन को बढ़ता है| 5 वर्ष तक के बच्चे नियमित सूर्य नमस्कार करना प्रारंभ कर सकते हैं |

महिलाओं को सूर्य नमस्कार क्यों करना चाहिए? |Why Should Women Do Surya Namaskar?

ऐसा कहा जाता है सूर्य नमस्कार वो कर सकता है, जो महीनो के संतुलित आहार से भी नही हो सकता है| स्वास्थ्य के प्रति सचेत महिलाओं के लिए यह एक वरदान है| इससे आप न केवल अतिरिक्त कैलोरी कम करते है बल्कि पेट की
मांसपेशियो के सहज खिचाव से बिना खर्चे सही आकार पा सकते हैं| सूर्य नमस्कार के कई आसन कुछ ग्रंथियो को उत्तेजित कर देते हैं, जैसे की थाईरॉड ग्रंथि (जो हमारे वजन पर ख़ासा असर डालती है) के हॉर्मोने के स्राव को बढ़ाकर पेट की अतिरिक्त वसा को कम करने में मदद करते हैं| सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास महिलाओं के मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करता है और प्रसव को भी आसान करता है| साथ ही ये चेहरे पर निखार वापस लाने में मदद करता है, झुर्रियों को आने से रोकता है और हमे चिरयुवा और कांतिमान बनाता है|

सूर्य नमस्कार से अंतरदृष्टी विकसित करें |Develop Your Sixth Sense with Sun Salutations

सूर्य नमस्कार व ध्यान के नियमित अभ्यास से मणिपुर चक्र बादाम के आकार से बढ़कर हथेली के आकार का हो जाता है| मणिपुर चक्र का यह विकास जो की हमारा दूसरा मस्तिष्क भी कहलाता है, हमारी अंतरदृष्टी विकसित कर हमे अधिक स्पष्ट और केंद्रित बनाता है| मणिपुर चक्र का सिकुड़ना अवसाद और दूसरी नकारात्मक प्रवृत्तियों की ओर ले जाता है|
सूर्य नमस्कार के ढेरों लाभ हमारे शरीर को स्वस्थ और मन को शांत रखते है, इसीलिए सभी योग विशेषज्ञ सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास पर विशेष बल देते हैं|

सूर्य नमस्कार करने से पहले ध्यान दे इन चीजों पर :-


1. सूर्य नमस्कार से पहले ठंडे पानी से स्नान करें

अभ्यास शुरू करने से पहले, सामान्य तापमान से थोड़े ठंडे पानी से स्नान करें। अगर एक खास मात्रा में पानी आपके शरीर के ऊपर से बहता है या आपका शरीर सामान्य तापमान से कुछ ठंडे पानी में डूबा हुआ रहता है, तो एपथिलियल कोशिकाएं संकुचित होती हैं और कोशिकाओं के बीच का अंतर बढ़ता है। अगर आप गुनगुने या गरम पानी का इस्तेमाल करते हैं, तो कोशिकाओं के रोमछिद्र खुल जाते हैं और पानी को सोख लेते हैं, हम ऐसा नहीं चाहते। योग के अभ्यास के लिए यह बहुत जरूरी है कि कोशिकाएं संकुचित हों और कोशिकाओं के बीच का अंतर खुल जाए क्योंकि हम शरीर की कोशिका संरचना को ऊर्जा के एक अलग आयाम से सक्रिय करना चाहते हैं। अगर कोशिकाएं संकुचित होकर बीच में जगह बनाती हैं, तो योग का अभ्यास कोशिका की संरचना को ऊर्जावान बनाता है।
कुछ लोग दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा जीवंत और सक्रिय इसलिए लगते हैं क्योंकि उनकी कोशिकाओं का ढांचा ज्यादा ऊर्जावान होता है। जब वह ऊर्जा से सक्रिय होता है, तो वह बहुत लंबे समय तक ताजगीभरा रहता है। यह करने का एक तरीका है, हठ योग। दक्षिण भारत में, नल का पानी आम तौर पर सामान्य तापमान से थोड़ा ज्यादा ठंडा होता है। अगर आप एक मध्यम तापमान वाली जलवायु में रहते हैं, तो नल का पानी ज्यादा ठंडा हो सकता है। सामान्य तापमान से तीन से पांच डिग्री सेंटीग्रेड तापमान आदर्श होगा। सामान्य से दस डिग्री सेंटीग्रेड तक कम तापमान चल सकता है – पानी उससे ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए।

2. सूर्य नमस्कार के बाद पसीने को त्वचा में मलें

चाहे आप आसन कर रहे हों, सूर्य नमस्कार या सूर्य क्रिया – अगर आपको पसीना आए, तो उस पसीने को तौलिये से न पोंछें – हमेशा उसे वापस मल दें, कम से कम अपने शरीर के खुले हिस्सों में। अगर आप पसीने को पोंछ देते हैं तो आप उस ऊर्जा को बहा देते हैं, जो आपने अभ्यास से पैदा की है। पानी में याददाश्त और ऊर्जा को धारण करने की क्षमता होती है। इसीलिए आपको तौलिये से पसीना नहीं पोंछना चाहिए, पानी नहीं पीना चाहिए या अभ्यास के दौरान शौचालय नहीं जाना चाहिए, जब तक कि उसे अनिवार्य बना देने वाले विशेष हालात न पैदा हों।
और योग के अभ्यास के बाद कम से कम डेढ़ घंटे बाद स्नान करें – तीन घंटे उससे भी बेहतर होंगे। पसीने के साथ दो से तीन घंटे न नहाना गंध के मामले में थोड़ा मुश्किल हो सकता है – इसलिए बस दूसरों से दूर रहें!

3. सही मात्रा में पानी पिएं

योग के अभ्यास के बाद स्नान से पहले कम से कम डेढ़ घंटे इंतजार करें।
सिर्फ उतना पानी पीना सीखें, जितने की शरीर को जरूरत है। जब तक कि आप रेगिस्तान में न हों या आपकी आदतें ऐसी न हों जिनसे आपके शरीर में पानी की कमी हो जाती है – जैसे कैफीन और निकोटिन का अत्यधिक सेवन – तब तक लगातार पानी के घूंट भरने की जरूरत नहीं है। शरीर का 70 फीसदी हिस्सा पानी है। शरीर जानता है कि उसे खुद को कैसे ठीक रखना है।
अगर आप अपनी प्यास के मुताबिक और 10 फीसदी अतिरिक्त पानी पीते हैं, तो यह काफी होगा। मसलन – अगर दो घूंट पानी के बाद आपकी प्यास बुझ जाती है तो 10 फीसदी पानी और पी लें। इससे आपके शरीर की पानी की जरूरत पूरी हो जाएगी। बस अगर आप धूप में हैं या पहाड़ पर चढ़ाई कर रहे हैं, आपको बहुत पसीना आ रहा है और शरीर से तेजी से पानी निकल रहा है, तो आपको ज्यादा पानी पीने की जरूरत है। तब नहीं, जब आप एक छत के नीचे योग कर रहे हों।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा, जितना हो सके, पसीने को वापस शरीर में मल लें मगर आपको हर समय ऐसा करने की जरूरत नहीं है। वह थोड़ा टपक सकता है – बस तौलिये का इस्तेमाल न करें। उसे वापस शरीर में जाने दें क्योंकि हम ऊर्जा को बहाना नहीं चाहते, हम उसे बढ़ाना चाहते हैं।

सूर्य नमस्कार का महत्त्व

चंद्र चक्र, जो सबसे छोटा चक्र (28 दिन का चक्र) और सौर चक्र, जो बारह साल से अधिक का होता है, दोनों के बीच तमाम दूसरे तरह के चक्र होते हैं। चक्रीय या साइक्लिकल शब्द का अर्थ है दोहराव। दोहराव का मतलब है कि किसी रूप में वह विवशता पैदा करता है। विवशता का मतलब है कि वह चेतनता के लिए अनुकूल नहीं है। अगर आप बहुत बाध्य होंगे, तो आप देखेंगे कि स्थितियां, अनुभव, विचार और भावनाएं सभी आवर्ती होंगे यानि बार-बार आपके पास लौट कर आएंगे। छह या अठारह महीने, तीन साल या छह साल में वे एक बार आपके पास लौट कर आते हैं। अगर आप सिर्फ मुड़ कर देखें, तो आप इस पर ध्यान दे सकते हैं।
अगर वे बारह साल से ज्यादा समय में एक बार लौटते हैं, तो इसका मतलब है कि आपका शरीर ग्रहणशीलता और संतुलन की अच्छी अवस्था में है। सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो इसे संभव बनाती है। साधना हमेशा चक्र को तोड़ने के लिए होती है ताकि आपके शरीर में और बाध्यता न हो और आपके पास चेतनता के लिए सही आधार हो।
चक्रीय गति या तंत्रों की आवर्ती प्रकृति, जिसे हम पारंपरिक रूप से संसार के नाम से जानते हैं, जीवन के निर्माण के लिए जरूरी स्थिरता लाती है। अगर यह सब बेतरतीब होता, तो एक स्थिर जीवन का निर्माण संभव नहीं होता। इसलिए सौर चक्र और व्यक्ति के लिए चक्रीय प्रकृति में जमे रहना जीवन की दृढ़ता और स्थिरता है। मगर एक बार जब जीवन विकास के उस स्तर पर पहुंच जाता है, जहां इंसान पहुंच चुका है, तो सिर्फ स्थिरता नहीं, बल्कि परे जाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से पैदा होती है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह या तो चक्रीय प्रकृति में फंसा रहे जो स्थिर भौतिक अस्तित्व का आधार है, या इन चक्रों को भौतिक कल्याण के लिए इस्तेमाल करे और उन पर सवार होकर चक्रीय से परे चला जाए।

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Manbhawan Pandey

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